जब जो चीज़ आपके पास होती है ,तो उसकी कद्र नहीं होती । जब नहीं होती तो हर पल उसी का ध्यान आता है ।ऎसी बहुत सी चीज़े होती है ;उन सब में अहम है , सैहत ।एक कहावत जो सच है और उसे मैंने अच्छी तरह से समझ लीया है । वो यह है "पहला सुख नीरोगी काया ,दूजा धन की माया"।
आगे की कहावत यहाँ प्रासंगिक नहीं।
बीमारी ,अस्पताल, दवाऎ ये सब पिछले दो माह से मेरे साथ इस कदर जूडे़ ,जैसे किसी लोक प्रिय
टी.वी कार्यक्रम के साथ ढेरो विग्यापन । मैं अपने दोनो पैरो की सुजन की वजह से चलने फ़िरने से तो क्या बैठने से भी दूर हुआ ।दर्द, बिस्तर और दवाईयाँ ये सब साथी बने व अस्पताल पर्यटन स्थल । वजह कोई ईनफ़ेक्शन ।बीमारी आई बहुत तेजी से मुझे बिस्तर पर लेजा कर पटक दिया । सेहत क्या होती है ,बिस्तर पर समझ मे आया ।समझ में आने लगी वो नसीहते ,जो बड़े लोग हमे दिया करते थे, व देते है।
काश के मैंने हर उस बात पर अमल किया होता,जो सेहत के लिये ज़रूरी है ।मगर अब क्या ;"कारवाँ
गुजर गया गुबार देख ते रहे " दिन रात यही सोचता रहता के काश ऎसा न होता ,ये क्यो हुआ। मगर फ़िर अगले पल खयाल आता की यह तो महज कोई इनफ़ेक्शन है। कभी भी किसे भी हो सकता है।
बेबसी और लाचारी एसी के दो कदम ,कोसो कि दुरी लगती । पेनकिलर सच्चे दोस्त लगते ।कभी घर के लोग बोलते बतियाते तो दुश्मनो जैसे लगते और चुप रह जाते तो लगता मैं सब से बड़ा उपेक्षीत मनुष्य हूँ। बैवजह चिड़्चिड़ाना ,खुद को,बीमारी और नसीब कोकोसना।यही सब रुटिन बन गया।टी.वी,रेडियो,अखबार किताबे सब चुभते से लगते।सब चिज़े बै मतलब की सी लगती।
वही डाक्टरो के फ़ेरे हर बार एक नई टेस्ट और नई दवाईयाँ नई आजमाईश । बीमारी पुछ्ने पर इन्फ़ेक्शन बतला कर चुप हो जाते ।वातावरण रहस्य मय होजाता मेरे आसपास।बरबस मैं अपने आप को अन्धेरे में पाता ।जहाँ से घुमना चलना दुसरी दुनियाँ की बात लगती ।मायुसी और बेबसी का ये आलम ; लगता जैसे तैसे रेल लाईन तक पहुचँ जाऊँ ,तो कोई गड़ी दर्द तकलीफ़ का अन्त तुरन्त कर जायेगी। नेगेटीव विचारो से जीतने मे मदद करते वे लोग जो हमारी भाषा मे "विकलांग " कहलाते ।मै उन के बारे मे सोचने लगता और मेरे आत्मघाती विचार खत्म हो जाते।
मैं सलाम करता हूँ उन अद्म्य साहसी लोगो को ;जो कुछ अंग या अंगो से विहिन होकर भी या कोई अन्य विक्लागंता के बावजूद भी समान्य तरिके से जीवन जीते है ।तथा वो सब भी करते है , जो समान्य मनुष्य नहीं कर सकता । अक्षमताओ के बावजूद जो मन और शरीर दोनो पर विजय पा कर सामान्य तरीके से जीते है।ऎसे लोग सचमुच सम्मानिय है ।प्रशंसा के योग्य है ।
एक बात और होती है बीमारी में , आपकी अच्छे स्वास्थ की कामना के साथ ,जाने अनजाने नुस्खे तथा ढेर सी हिदायते मिलती है।अपने लोगो तथा मिलने वालो से ।
अब थोड़ा चलफ़िर पा रहा हूँ ,टाईप भी कर पा रहा हूँ । अगली बार कब लिख पाऊँगा पता नहीं।
बीस पच्चीस दिन पहले , एक बार हिम्मत कर के कम्प्युटर के सामने बैठा ; मगर आँखो ,और हाथो ने मना किया ।एक कविता जो मुझे बहुत अच्छी लगी थी "पिता " किसी कार्ड पर प्रिन्ट थी ।उसके कवि ग्यात नहीं थे ।मैंने आधी टाईप की ;हिम्मत और ताकत जवाब दे गयी ।आगे की कविता मेने अपने आठ साल बेटे से टाईप करवाई। फ़ादर‘स डे पर ब्लाग पर लगाई । अभी एक दिन जब ब्लाग खोला तो आदरणिय समीर जी से ग्यात हुआ की वह रचना श्री ओम व्यास जी की है।वे दवाखाने में भर्ती थे ।नियती से श्री ओम व्यास जी हार गये । उनकी प्रेरणा दायक कविताऎं सदीयों तक पढी जायेंगी।ईश्वर उन्हें उत्तम लोक में उच्च पद प्रदान करें।
आखीर मे एक शेर किसी शायर का ,
" जिन्दगी को संभाल कर रखीये,
जिन्दगी मौत की अमानत है ।"
शुक्रवार, 17 जुलाई 2009
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आप अपना ख्याल रखिये...ब्लोगिंग तो होती रहेगी
जवाब देंहटाएंमेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
apni sehat ka khayal rakhe.get well soon
जवाब देंहटाएंApna Khyal Rakhein
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