शुक्रवार, 5 जून 2009

सिमटते रिश्ते.......

वर्तमान दौर न्युक्लियर फ़ेमिली का दौर है ।इस समय में परिवार मतलब पति पत्नि व बच्चा है ।सारी परिभाषाए बदल चुकी है । भौतिकवाद के इस दौर में भौतिक साधनो का विस्तार हुआ है ;कमफ़र्ट पर अधीक ध्यान देता है आज का आदमी । साधनो के विस्तार में कोई कमी नहीं चाहिऎ उसे ।मगररिश्तो के दायरो को समेटता जारहा है, रिश्तो को सिकोड़ता जा रहा है ।हक ,अधिकार सभी सिमटते जा रहे है ,रिश्तो की दुनिया में। युँ कहा जाए तो आज का मानव सेल्फ़ सेन्टरड हो गया है।
आज कल छोटे बच्चो के कोर्स की किताब में एक पिक्चर डिक्शनरी होती है । उस किताब मे एक पेज़ पर माय फ़ेमिली का चित्र होता है। उसके माद्यम से बच्चो को बतलाया जाता है ,कि फ़ादर मदर के अलावा भी रिश्ते होते है ,रिश्तेदार होते है।वास्तव में आज के युग में लोग रिश्तो को जीना भुल चुके है। उसकी कमी को पूराकरता है वह पेज़ ।बच्चा एक रिश्ता जी लेता है उन चित्रो पर अगुंली रख कर ।
अगुंली रख कर बच्चा बोलता है ग्रेण्ड्फ़ादर मतलब दादा ।सच मेंबच्चे का दादा उसके सथ नहीं।
दादा या तो उसके पिता की ज्यादतीयो का शीकार है या पिता ,दादा की दादागिरी का मारा। अब सबसे करीबी रिश्ता पिता पुत्र का उसमे भी बे-ईमानी स्वार्थो का टकराव शेष दुनिया की क्या कहे ?
अच्छे भाई कभी कभी ही हुए है कहानीयों में ।वास्त्व मे स्वार्थ एसा तत्व है जो ,भाइयो को एक नहीं होने देता।बहन अपअने वर्चस्व की लड़ाई में हमेशा संघर्श रत होती। ब्याह के बाद भी अपने वर्चस्व की लड़ाई में जूटे रहना उसकी बाध्यता है। काका ,मामा ,मासी,भुआ तो दूर की बात हुऎ। अब बतलाइये सच में कौन सी है माय फ़ेमिली ?
आज के समय मे न्यायालयो मे मुक्कदमो का सर्वे किया जाए तो ,एक अच्छी संख्या होगी भाइयो और पारिवारीक विवादो के मुक्कदमों की।एक तरफ़ मेहमान को हम जान से प्यारा मानते है , तो दूसरी तरफ़ माँ जाये भाईयो में संपत्ती के विवाद । कैसा सांस्कॄतीक विरोधाभास जीते है हम और हमारा समाज..!
बहन अपने आस पास के सारे लोगो का ध्यान चाहती है साथ ही चाहती है अपनी सारी अपेक्षाओ की पुर्ती अवीवाहित होने पर तथा विवाहित होने पर भी । और अब पेतॄक संपत्ती पर भी कानूनन हक की बात भी।बतलाईये दिल से कितने भाइयो को बहनो से लगाव है ?
काका,मामा, ताऊ दूर की दुनियाँ के बाशिन्दे है ।सब अपनी अपनी लकीरे बड़ी करने में लगे होते है। यकींन न हो तो देखिऎ इस दौर के टीवी सिरियल , हो सकता है कुछ अतीशयोक्ती पुर्ण होगें; तो कुछ यकीन की हद में।ये सब इसी दुनियाँ की कहानीयाँ है।
आज कहीं संयुक्त परिवार हो ,और उसकी जिन्दगी स्मूद ली चल रही है तो समाचार पत्रो में उसकी खबर छपती है । लोग उसके चर्चे करते है;रश्क करते है। खुद अपनी बात हो तो समेट लेते है खुद को अपने शेल्टर में कछुए की तरह। कैसा लगता है यह सब जैसे "कोई आदतन झूठ बोलने वाला ,सत्य नारायण की कथा बाचें "; जी हाँ,रिश्तो और रिश्तेदारीयो में कुछ इस ही तरह होता है ,आज कल ।
हम विदेशो की बाते करते है की ;परिवार नाम की संस्था वहाँ कमजोर हुई है । हमारे समाज का हम सिहांवलोकन करे तो हम क्या पाते है?
हर कोई एक ही चीज़ को प्राथमिकता देता नज़र आएगा "होल थिन्ग इज़ देट के भईय्या सब्से बड़ा रूपया " रिश्ते बाद की बात है।
में और मेरा .......!, बड़ा दुश्मन है ; सब रिश्तो के साथ चलने का । छोटे छोटे अहम बड़े टकरावो को जन्म देते । सयुंक्त परिवार तो क्या , एकल परिवार भी बिखर जाते इस तरह के टकरावो से ।
कुछ किस्मत वाले संयुक्त परिवारो मे आज भी रिश्तो मे गर्मी है ,वे लोग जी रहे है रिश्तो को भरपूर तरिको से ।आस पास तलाशे तो पाऎगें ,ऎसे परिवार कुछ एक ही है।
खैर आने वाले समय में ,हर जगह जहाँ एक ही बच्चा है ;वहाँ भुल जाऎगे वे सब रिश्तो को ।क्योकी एक बच्चे का कोई भाई नहीं तो कहाँ चाचा ,ताऊ ? बहन नहीं तो कहाँ मौसी ,भुआ ?
तब शायद चचेरे ,ममेरे ,मौसेरे फ़ूफ़ेरे भाई बहन भी नहीं होगें ?
देखिऎ वह वक्त दूर नहीं .............सच ! वह वक्त दूर नहीं ।

3 टिप्‍पणियां:

  1. आने वाले भविष्य की अच्छी तस्वीर खीची है । इस की शु्रूआत तो हो ही चुकी है। हम भी उसी के भुग्तभोगी हैं।

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  2. यही आज का सच है..परिवार ख़त्म हो गए है...वृद्ध.. आश्रम बढ़ते जा रहे है..स्कूलों में ऊँट को कैमल बताया जा रहा है..!इसी तरह बच्चे के लिए मौसा,मामा,चाचा,ताऊ आदि सब अंकल हो गए है...

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