शुक्रवार, 29 मई 2009

खत लिख दे.............

सूचना क्रांती के इस दौर में पत्र लेखन का महत्व कम से कम होगया है ।एक समय था जब पत्र बहुत ही महत्व पूर्ण था । व्यवसायीक पत्र तो उस समय में भी लिखे जाते थे,आज भी लिखे जाते है। मगर पारि्वारीक पत्र मित्रो ,परिचितो को पत्र प्रेयसी को प्रेम पत्र ये सब लोग भूल गये और भूलते जा रहे है।वर्तमान समय में फ़ोन, मोबाइल फ़ोन ,ई-मेल ,एस.एम.एस .ये सब मुख्य माध्यम बनगये है।
पत्र लेखन एक बहुत ही रचनात्मक काम होता था । व्यक्ती स्वयं अपनी एक शैली विकसीत करता था। प्रिय , आदरणिय ,पूज्य,अत्र कुशल तत्रास्तु , हम कुशल से आपकी कुशलता की कामनासे चलकर आपका अपना ,तुम्हारा ,आपका आग्याकारी तक सब कुछ मधुर मधुर लगता था ।अब इन शब्दो का स्थान ले लिया है -हेलो ,हाई और बाईबाई ने ;और कीपेड पर चलता अँगुठा ,इसी में पूरा हुआ सब कुछ।
पत्र लेखन सिर्फ़ समाचार पहुँचाने का माध्यम ही नहीं था ,अपितु इसका साहित्यीक महत्व भी होता था । पं.नेहरू जी ने पत्रो केमाध्यम से अपनी बेटी को जो कुछ लिखा वह डिस्कवरी आफ़ इंडिया के रूप मे सब के सामने है।ऎसे कई महापुरुषो के पत्र आज साहित्य की धरोहर है।
खतो किताबत का एक अलग ही आनंद होता था ।स्वीकरोक्ती का अच्छा माध्यम होता था पत्र लेखन ।गांधी जी ने बचपन में जो गलत किया , सीधे बताने का साहस न हुआ तो पिता को पत्र लिख कर सब कह दिया ।एक अच्छी विधा "पत्र लेखन " पर अब बिजनेस लेटर के रुप मे ही जीवित है ।
पहले मुहल्ले में जिस के घर ज्यादा पत्र और डाक आती थी ,वह व्यक्ती उतना सम्मान की द्रष्टि देखा जाता था । पत्र पत्रीकाओ में एक कालम होता था पत्र मित्र का । तस्वीर के साथ पता छपा होता था पत्र मित्रता के लिये ।लोग अनजान लोगो को मित्र बना लेते थे, पत्र लिख कर।
उस दौर के फ़िल्मी गानो में भी पत्रो का जीक्र होता था ।"खत लिखदे सावरियाँ के नाम बाबु ", "हम ने सनम को खत लिखा ", "फ़ूल तुम्हे भेजा है खत में" , "लिखे जो खत तुझे"ऎसे सेकड़ो गानो ने
पत्रो के गौरव को बढा़या है । डाकिया भी महत्व पुर्ण होता था ,उसका इन्तजार हर कोई करता था।"डाकिया डाक लाया , डाकिया डाक लाया । खुशी का पैगाम कहीं कहीं दर्द नाम लाया "उक्त गाना सचमुच चरितार्थ होता था । निदा फ़ज़ली साहब का एक शेर है - डाकिया बड़ा जादुगर , करता बहुत कमाल;
एक ही झोले में भरे, आँसू और मुस्कान,
इतने सुन्दर शेरो ,और काव्य रचना का आधार पत्र ही तो है। मगर अफ़सोस डाक खानो का काम कम कर रहे फ़ोन मोबाईल ने पत्र लेखन को हाशिए पर ढकेल दिया ।
पत्र ,पत्रिकाओ, समाचार पत्रो को भेजे जाने वाले पत्रो मेंभी कमी आयी है । आईपाड और एफ़ .एम. के ज़माने में , फ़रमाइशी पत्रो के माधयम से जाने ,जाने वाले झुमरीतलैया को लोग भूल रहे है।
वो प्रेमी ,प्रेमीका का छुप छुप कर पत्र लिखना , भेजना और पढ़ना सोचिये कितना रोमान्टीक होता था ।इस माध्य्म के चलते प्रेमी प्रेमीका ,पूरी तरह से मेच्योर हो जाते थे ;परिणीती विवाह तक ।
कक्षा तीन से छुट्टी के प्रार्थनापत्र से चल कर प्रेम पत्र तक का सफ़र बहुत ही सुहाना होता था । "कबूतर जा जा ,पहले प्यार की पहली चिठ्ठी " आदिम युग की बात है अब सीधा पूछा जाता है "व्हाट इस योर मोबाईल नम्बर " यही तो जेट एज है ।
गालिब ने कहा-
क़ासिद के आते-आते इक खत और लिख रखूं
में जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में.
शायद ,ये शेर अब सामयिक नहीं ।मगर शेर अच्छा लगता है। खुदा करे खतो-ओ-किताबत चलती रहे ,फ़ोन, मोबाइल फ़ोन ,ई-मेल ,एस.एम.एस . के इस दौर में ।ताकी अगली पीढ़ी भी जान सके पत्र लेखन की विधा को ।

4 टिप्‍पणियां:

  1. Wonderful hindi and nice style!
    It seems to me that you have read a lot hindi -urdu literature, and also have a great idea on films.

    Please write some blogs on past topics like floppy, torch, stove, some indian rituals which are extint now.

    Your title is also very good!

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  2. उन दिनों में खत आने की ललक हृदय थी खास।
    बातें तो अब हो जातीं पर न वैसा एहसास।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.

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  3. खत का मजमून भाप लेते थे ,लिफ़ाफ़ा देख कर।

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  4. आप की पीड़ा आपका लेख बता रहा हैं. वास्तव में पत्र लेखन की वो विधा, ललक,शोक,महत्व भूल से गए हैं. आने वाली पीड़ी को धरोहर में हम कुछ देना चाहते है तो वो पत्रों का महत्व, अपने पावन दिल के विचार व्यक्त करने का सशक्त माध्यम..................................पत्र ही तो दे सकते है.............यही परम आवश्यक ही नहीं बल्कि हमारा कर्तव्य है.

    भानु सिंह भाटी
    9982314400
    Bhanubhati2012@gmail.com

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