बुधवार, 13 मई 2009

विमाता भी एक रुप है...........

ईश्वर की सर्वोत्तम कॄती माँ पर , मदर‘स डे के उपलक्ष्य में हजारो अभीव्यक्तियाँ लिखी गई ,पढ़ी गई ।जहाँ सुख है वहाँ दुख भी है।हर सिक्के के दो पहलू होते है ।जहाँ माँ है ,वही जिन की माँ इस दुनियाँ नहीं है, उन पर विमाता का साया है ।आपका ध्यान चाहूगाँ इस शब्द विशेष "विमाता " पर ।"विमाता " एक ऎसा शब्द जो धधकता रहता है,खुद अपनी आग तथा सौतेले बच्चो से डाह की आग में ।जहाँ माँ ईश्वरीय फ़रिश्ता है ; वहीं विमाता दण्डीत करने का माध्यम है विधी का। शायद पूर्व जन्म के बुरे कर्मो के दण्ड स्वरूप नियती से प्राप्त होती है विमाता । जैसे शब्द वितॄष्णा,विकॄती,विरक्ती,वैमनस्य ऎसे शब्दो के क्रम में खुद अपनी कहानी कहता शब्द है "विमाता " । जब हम बात करे विमाता की तो हमें समझना होगा शब्द वि + माता =विमाता ;विरक्त माँ उन बच्चो से जो उसके नही,उनमे विमाता की आसक्ती नहीं।सौतेली माँ ,दूसरी माँ ऎसे कैई शब्द प्रचलन में है विमाता के लिये । एक बात पर ध्यान दिलाना चहूँगा इस तरह के शब्दो में माँ जुड़ा होता है; जो शायद एक तरह से " माँ " का अपमान होता है ।"माँ " मधुर अनुभूति है तो विमाता प्रताड़ना है निश्चय ही। आप सभी सहमत नहीं होगें मेरी इस बात पर । कहा जाता है "जाके पैर न फ़टी बिवाई वो क्या जाने पीर पराई "।जिन अभागो की "माँ " बचपन मे गुज़र जाती है वै ढ़ोते इस शब्द को अपनी आत्मा पर ।
सत युग में श्रीराम ने विमाता कैकेयी के कारण प्रताड़ना सही दण्ड्कारण्य में रह कर । ध्रुव ढ़केला गया पिता कि गोद से । धीवर पुत्री ने विमाता बनने से पुर्व देवव्रत को भीषण प्रतिग्या कराली वे इस तरह भीष्मपितामह हुए । सत युग से कलयुग तक यही कहानी दोहराई गई और दोहराती जाती रहेगी। फ़िल्म सरगम का वह द्रष्य सभी को याद होगा । गुँगी नायीका ,जो नॄत्य कर रही है;के पैरो पर जलती लकड़ी से मारती पैर जला देती है ,अंगारे बिछा देती है;यह माँ सौतेली है।अमर प्रेम फ़िल्म के छोटे बालक पर ज्यादतीयाँ करती ,अत्याचार करने वाली माँ , दूसरी माँ है।
जो स्त्री कोमलता ,कोमल भावनाओ का परिचायक होती है;वह इतनी क्रुर,क्रुरतम क्यो होजाती है।शायद काम्पलेक्स है;वह जो लड़की जो कुवाँरी है ,एक विवाहीत पुरुष जो एक दो सन्तती उत्पन्न कर चुका है ; के साथ जीवन को शेयर करना होता है । तथा पिछली पत्नि की बनी बनायी छवी को छीन्न भीन्न करना होता है।यही सब मनोविग्यान काम करता है ,दूसरी सोतेली माँ मे ।शादी के तोहफ़े के रूप में प्राप्त बच्चे ,विमाता को इसलीये भी नही भाते,क्योकी उसने उन बच्चो कि प्रसव पिड़ा को नहीं भोगा है । दर्द की सहभागीता नहीं तो कोई साहनूभुति नहीं। या शायद मरी सौत के डाह से तपते कलेजे पर सौतेले बच्चो के ममत्व की बुँद पड़ने से जैसे ;तड़कता है ठंडा प्याला ,वैसे ही चटक जाती है मामता ...खो जाता है ममत्व । प्राकट्य होता है विमाता का ।और उनके स्वयं माँ बनने के बाद अत्याचारो और प्रताड़नाओ के इपिसोड्स और बड़ते जाते है । शायद यह प्रकॄती भी है।जैसे प्रकॄती मे नर पशु , नरपशु को मारडालता है,वैसा ही कोई भय सताता है नीज सन्तती के लिये विमाता के मन में।साथ ही उसे अपने नीज बच्चो के पारिवारीक संपत्ती पर हक को ले कर भय होता है ,शंकाए होती है।तभी विमाताए वेम्प बन प्रथम पत्नि की संतत्ती को प्रताडित करने के तरीके ढ़ुडंती रहती है ।
वह पुरुष जिसने ब्याह किया है दुसरी बार , अपनी नई पत्नि के आगे मयूर नॄत्य के इलावा कुछ करने की चाह नहीं रखता ।उसकी दूसरी पत्नि का सच ही उसका सच होता है ।काम काफ़न्दा उसके भी गले है ।उसे पिछली नही आगे की सोचनी है।वह सोप चुका होता है अपना् मन मस्तीष्क पुर्ण रुपॆण अपनी नई पत्नि को ।शायद ही एसे लोग कभी इस तन्द्रा से जागे ।
अखबारो मे छपते रहे है छपते रहेगें ये किस्से -संपत्ती के लिये विमाता ने हत्या करवाई। लड़की को कोठे पर बेंचा । साथ ही घर के सारे काम करवाना ,भुखा रख्नना, मारना पिटना,जली कटी सुनाना ,जलाना,रस्सी से बांधना ऎसी बाते प्राय: पढ़ने सुअनने को आती है ।क्या यह मन गड़न्त होती है ?ना जहाँ धुआँ वहाँ ......आग! साहित्य भी प्रमाण है।
यह सच है की ,प्रसव मे ,दुर्घटनाओ मे ,कलह की परिणीती आत्महत्याओ मे विवाहित महिलाओ की मॄत्यु की एक दर सहज ही निश्चित है और उसी दर के आधार पर विमाताओ का एक बड़ाप्रतीशत भी ।
घरेलू आतंअकवाद का पर्याय ये विमाताए मातॄ विहीन बच्चो के,हक ,व्यक्तित्व ,खूबीयो,अच्छाईयो का हरण मर्दन कर उन्हे बोन्साई बनाने से बाज नहीं आती। इसके बाद भी तनाशाही हिटलरशाही के बल पर भुगतभोगी पिड़ीत बच्चो के मन पर निरंतर दरारे डालने ,चोट पहुचाने का क्रम जारी रहता है।
यहाँ मैं एक बात और बतलाना चाहूगाँ।विमाता का लेवल लगी कोई माँ सचमुच उन बच्चो से प्यार करती है;जो उसके नहीं है; तो हमारे समाज ,विधी ,ईश्वर के द्वारा लगाए गये ठप्पे से कई बार सच मे उसका ममत्व दब जाता है विमाता शब्द मे। शायद यह सबसे बड़ी विड्म्बना है विमाता शब्द की ।
जहाँ बहुत छोटे बच्चे होते है ,माता ,विमाता का भेद नहीं समझ पातेहै; मगर जो समझते हैऔर समझचुके है ,उनके लिये विमाता सात जन्मो तक भी " माँ " नहीं हो सकती ।यही शाश्वत सत्य है।

3 टिप्‍पणियां:

  1. बिल्‍कुल सही लिखा है .. ममता और करूणा की देवी मानी जानेवाली स्‍त्री के इस व्‍यवहार का कारण समझ में नहीं आता ?

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी बात कुछ हद तक सही हो सकती है ..पूरी तरह से नहीं...!हो सकता है कुछ कारण.. से विमाता रूप देखने को मिले लेकिन माँ हमेशा माँ ही होती है...

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सही जी
    बहुत सुन्दर

    आभार

    मुम्बई टाईगर
    हे प्रभु यह तेरापन्थ

    जवाब देंहटाएं