चुनावो का दौर निपट ने को है।आम जन चुनाव प्रचार के दौरान ,नेताओ राजनेताओ के तमाम उद्दगारो से वाकिफ़ हुए ।कहीं लोक लुभावन बाते ,तो कहीं ड्रेगन की तरह आग उगलते विभिन्न दलो के राजनैता ।इस दौर मेंछीटा कशीं से पूर्ण चरित्र हनन तक सारी प्रक्रियाए हुई। कहीं खानदानो की विरुदावली बाची गई , तो कहीं वन्शो के अनुवान्शिकी गुणो का बखान । अपने नेताओ के लिये सुन्दर कथन ,विरोधीयो के लिये कहे शब्द , पिघलते सीसे के कान मे उन्डेले जाने जैसे ।
मर्यादा राजनीति मे प्रमुख शब्द, इस शब्द की सभी दुहाई देते । और करते चलते अमर्यादीत आचरण । इस दौर मे सभी, राजनिती के स्तर गिरने की बात करते है । यह हुआ भी है । पोलिटिकल लोगोके, कथनो वक्तव्यो, जो विभीन्न माध्यमो से हम तक पहुँचते है । उन मे मुल्यो के हास की बात साफ नजर आती है। जयशंकर प्रसाद के अनुसार "साहित्य समाज का दर्पण है "; वैसे ही जो घट रहा है वही अखबारो मे टी वी चेनल्स व साहित्य ,फ़िल्मो मे दिख रहा है।
आज जब भी पुराने नेताओ की बात की जाती है ;तो उसके साथ प्रकट होता है ,उनका तेजोमय ओरा ।तमाम मानवोचित गुणो के साथ ,नैतिकता ,ईमानदारी ,सादगी सहज ही उभर आती है उन तेजोमय चरित्रो मे। जे.पी. तथा आचार्य कॄपलानी जैसे लोगो के बाद मूल्यो और सिध्दातओं का दौर खत्म हुआ सा लगता है।
क्या हमारे समाज मे पहले की अपेक्षा ,कहीं शिक्षा या जाग्रती मे कोई कमी आई? जी नही आज के दौर मे हमारा समाज विकास के कई सौपान चढ़ चुका है।पुराने दौर में जहाँ स्नातक शिक्षा की व्यवस्था कुछ ही स्थानो पर थी ।शिक्षा का प्रसार कम था।वहाँ इस दौर में हर तहसील स्तर पर स्नातकोत्तर शिक्षा की व्यवस्था होचुकी या की जा रही है।साक्षरता का प्रतिशत काफ़ी बढ़ा है ।समाज में हर तरह की अवेयर नेस है।महा विद्यालयो में राजनिती विषय पर बड़े काम हुए ।इस विषय पर काफ़ी शोध हुऎ,बड़ी बड़ी थीसीसे लिखी जा चुकी है।बड़े बड़े डाक्टर ,पंडित इस विषय के हमारे पास उपलब्ध है,मगर व्यवहारीक तौर पर इस का कोई उपयोग नहीं।वही अब छोटे छोटे गाँवो ,कस्बो तक अग्रेंजी माध्यम के स्कूल ,कम्प्युटर शिक्षण व पर्सनालिटी डेवलप्मेन्ट कि कक्षाएँ होती है। वहीं धार्मिक चेनल्स की बाढ़ ; इन पर धर्म गुरू लोग , जीवन , धर्म ,कर्म ,राजनीति सभी का मर्म समझाते नज़र आते है ।आप खुद ही देखीये कितना परिवर्तन ।आदमी, आदमीयत के विकास की हर सुविधा मौजूद है।
मगर देश का दुर्भाग्य; नेताओ की वर्तमान पीढ़ी जो नेतृतव मे समाहित आधार भूत गुणो से रिती है तभी उनके आचरण में कहीं भी सिध्दातों, मुल्यो का नाम नहीं ।राजनिती में से निती का हास। सिर्फ़ और सिर्फ़ सत्ता के लिये राजनीति ।
आज गाँवो ,कस्बो ,शहरो मे नेताओ की नई पौध शुरू होती है;वह अवैध अतिक्रमण को स्थानीय निकायो से महफ़ूज रखती है ।भूमियो पर कब्जाऔर उसका रक्षण।विरोधीयो का हिन्सक तरीके से निपटान ।अनीति से कुछ भी अर्जन करना ।ईमानदार सरकारी कर्मचारीयो से कुछ् भी सही गलत करवा लेना। ये सब करने के बाद प्रशिक्षु ,राजनीति के" गुरू मन्त्र "से दिक्षीत हो जाते है।और शुरू हो जाता है राजनैतिक जीवन ।
मर्यादा पुरूषोत्तम राम के अनुयाईयो में कहीं मर्यादा नहीं ।गाँधी के गुण गाने वाले .....गाँधी के दर्शन से कितनी दूर है।लोहिया सिर्फ़ किताबो मे है । कब तक रहेगी देश की बाग डोर ऎसे हाथो में। पुरानी पार्टीयो के बरगद ,क्षैत्रीय पार्टीयो की खरपतवार क्या "वास्तवीक नायको "को कभी जमीन देगी जो बदलाव की बयार ला सके ? इस संक्रमण काल मे शायद असंभव सा लगता है।हम और हमारा समाज बैठा रहेगा किसी मसीहा के इन्तजार मे जो बदलाव कि बयार ला सके। सोचते रहेगें "वो मसीहा आऎगा" "वो मसीहा आऎगा"’।
गुरुवार, 7 मई 2009
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आज की राजनीति में मर्यादा!
जवाब देंहटाएंअजी किस ज़माने की बात करते हैं?