बुधवार, 20 मई 2009

सब चलता है..........

हम भारतीय लोग ,हमारी अपनी कुछ विशिष्टताऎ है।राजनीति पर चर्चाऎ तो खुब करते है ,मगर वोट नहीं देते है । हम स्थानीय प्रशासन को खुब कोसते है ,व्यवस्था नाम की चीज़ नहींहै ,ऎसाहै वैसा है। गाँव ,नगर ,शहर में सभी कचरे की ,गन्दगी की दुहाई देते मगर हम खुद अव्यवस्था फ़ैलाते है ।अपने घर की सफ़ाई कर कुड़ा कचरा सीधा बाहर सड़क पर । "कोई बात नहीं मेरा घर तो साफ़ है"। नगरपालिका की खाली कचरापेटी गवाह बनती है इन सब की।सार्वजनिक स्थानो पर डस्टबीन्स का प्रयोग हमारी शान के खिलाफ़ है।
सिंगापुर , जापान की बाते की जाती है,वँहा सड़के काँच जैसी साफ़ सुथरी है ।ये तमाम बाते किजाती है इसी दरमीयान बातो के बीच मुँह का जर्दा पान सड़क पर ,दीवार पर किसी भी कोने पर आक थू। बना दिया सिंगापुर जापान इन्डिया सब का नक्शा एक बार में । कोई बीच में टोंके तो जवाब होगा सब चलता है यार। एक मुस्कान और बात ख्त्म।
कुत्ते और दुसरे जानवर पालेगें ,सड़को के किनारे गन्दगी करवाएगे ।फ़िर शहर की नगरपालिका को कोसेगें। देश ,देश की व्यवस्था यह सब हमारे आलोचना का विषय होगें। अपनी गाड़ी से जा रहे है , ट्रेफ़िक पुलिस ने रोका चेक किया ,कागज नहींहै ,हेलमेट नहींहै ,सीट बेल्ट नही लगाया , तीन सवारी जो भी अवैधानीक हो ;पुलीस के कर्मचारी को ऊपर की पँहुच का वास्ता देते है।कुछ ले दे के मामला निपटाने का प्रयास करते है।फिर वही बाते हमारे देश मे करप्शन कितना बड़ा हुआ है ।खुद गाड़ी कभी ठीक से नही चलाएगे मगर हम इंडियन में ट्रेफ़िक सेन्स नहीं है ।यह कहने से बाज़ नही आयेगें।
किसी सरकारी काम के लिये किसी दफ़्तर मे गये :मालुम चला की उस काम के पूरे प्रोसिजर मे दो माह का वक्त लगेगा ।तब संबन्धीत कर्मचारी अधिकारी को कुछ भेट इत्यादी से मनाने का प्रयास ,येन केन प्रकारेण अपना काम निकालना । बाहर फ़िर वही बातें देश में भ्रष्टाचार खुब बड़ गया है।बहुत खराब हालत है देश की ।
विदेशो की कहते है,वहाँ आदमी खुद कार्ड पंच कर पार्किगं टीकिट लेता सब कुछ व्यवस्थीत स्वत: ।हमारे यहाँ गाड़ी कही भी लगा दी क्रेन ने गाड़ी उठा ली । लगे सारी व्यवस्था को कोसने । खुद नही देखते की गाड़ी ठीक जगह और ठीक तरीके से पार्क नहीं की है ।
ट्रेन्स लेट ,डिब्बे साफ़ नही ,पानी नही मौखीक जमाखर्च होता रहेगा ।स्टेशन मास्टर या संबन्धीत अधिकारी तक शिकायत कोई नही पहुँचाता । रेल्वे और देश दोनो को कोसते रहेगें ।हर जगह देश में शिकायत एवं सुझाव का प्रावधान है , मगर हमे क्या ।
गाड़ी में पेट्रोल डलाते समय नाप और क्वालिटी का रोना रोऎगें वहाँ मोजूद कम्पनी प्रद्त्त जाँच और नाप सुविधा को नजर अन्दाज करे देते है ।
कोई अपराधी छवी वाला उम्मीदवार मैदान मे हो तो ,जनता उसे चुनके संसद ,विधानसभा ,न.पा. ,पंचायत कही भी बिठादेगी ।फ़िर वही चर्चा राजनिती गुंडो का काम है बहु बलीयो के बस की बात है।
देश मे फ़ेले अधंविश्वासो ,पिछड़े पन की बाते खुब सारी , साथ ही दरवाजे पर दुकानो पर निम्बु मिर्चि लटकाना हमारा प्रिय शगल है ।
किसी छोटे ने चालान जुर्माना इत्यादी भरा हो तो बड़े बुढ़े यह कहते नज़र आयेगें "तुम में जरा भी होशीयारी नहीं है , कुछ ले दे के बात खत्म करनी थी।कम मे काम होजाता ।ये चीजे कब सिखोगें"?
ऎतीहासिक इमारतो पर कोयले और पत्थरो से खुदे लैला मज़नूओके शिलालेख यह बताते की,हममे कितने अवेयर है ।ये इमारते खुद चिल्ला चिल्ला कर अपनी कहानी कहती है।
खुदा न खास्ता अगर किसी कोर्ट में मामला चल रहा हो तो अपने हिसाब से तारिखे बढवाने को कुछ नोट बढा कर ,तारीख बढ़वा ली।फ़िर भ्रष्टाचार का वही गीत गाते ।
जी हम स्कूल मे नैतिक शिक्षा पढ़ा सकते है ,अमल मे लाना व्यर्थ है। हर वर्ज़ना और वर्ज़ित को करना हमारा धर्म होता है । आज़ादी के बासठ साल के बाद भी हम व्यवस्थाओ मे कोई विशेष बद्लाव नहीं पाते है।साथ ही देश समाज ,व्यवस्था को कोसना ही हमारा धर्म , दायीत्व एवं प्रिय शगल है । कब तक हम अपनी लापरवाहीयो ,गलतीयो को सरकार ,प्रशासन ,नगर पालिकाओ पर थोपते रहेगें ।" सब चलता है " इस जुमले पर कब तक अमल करेगें ?आखिर कब तक?

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