इन दिनो चाह कर भी दूसरे विषयो पर,ध्यान नहीं जाता। सभी के दिमाग मे सिर्फ़ एक ही बात चल रही है; की अगली सरकार किस की होगी ? किस पार्टी की सीटे सब से ज्यादा होगी? किस पार्टी कि सरकार बनाने मे अहम भूमिका होगी? "कौन होगा प्रधान मन्त्री" ?क्या बनने वाली सरकार स्थायीत्व वालीहोगी ? यही सब प्रश्न आम आदमी के मानस को मथ रहे है ।
इस दौर मे पन्द्रहवी लोक सभा के लिये निर्वाचन के तीन चरण निपट चुके है ।मतदान का प्रतिशत काफ़ी कम रहा ; अमुमन पचास से दो तीन प्रतिशत ज्यादा होगा ।इस देश की जनसंख्या एक अरब तीस करोड़ के लगभग है । इस मे कुल मतदाताओ की संख्या इसकी आधी ।चुनाव मे वोट देने वाले इस के भीआधे ।इन आधे मतदाताओ के द्वारा चुने प्रत्याशीओ की कुल सख्यां से किसी भी पार्टी को पूर्ण ,स्पष्ट बहुमत प्राप्त हो ऎसी संभावना कम ही है।आखरी चरण के चुनाव के पहले और बाद भी सभी चैनलो और अखबारो में जोड़ तोड़ के गणित और संभावनाओ पर चर्चा चल रही है ।
अपने अपने सिध्दान्तो और विचारधारा की दुहाई देने वाली पार्टीयो में किस के साथ लाभ किस के साथ हानी;इन्ही सब विषयो पर चिन्तन चल रहा है ।"जिस मे हो दम उसी के साथ हम" जिनका सूत्र वाक्य है ,वे सत्ता का सुख पाने के खयाल से खुश है।
ऎसे मे, कुछ प्रश्न सहज ही सामने आते है।क्या क्षैत्रिय पार्टीयो का केन्द्र की सरकार हेतु ,अपने प्रत्याशी ओ को चुनाव लड़वाना ठीक है ? संख्या के आधार पर दो या चार सांसदो के साथ , सरकार मे अपनी भूमिका खुद तय करना क्या उचित है ? किसी भी विषय पर सरकार का शक्ति परिक्षण होना और एक मत पर सरकार का गिरना क्या उचित है? संख्या के खेल में हार्सट्रेडिंग ,अपनी शर्तो पर समर्थन देना , और जब चाहा वापसी की बात ,क्या यह उचित है ?शर्तो केसाथ मन्त्री का पद कीचाह, क्या यह लोकतन्त्र की मूल आत्मा का हनन तो नहीं?
इन सब प्रश्नोके उत्तर मे सिर्फ़ यही बात सामने आती है की; राष्ट्रीय स्तर की पार्टीओ ने अपनी लोकप्रियता खोई ,अपनी साख को गिराया है ।आम मतदाता के मानस से अपनी अच्छी छवि को मिटाया है ।परिणाम क्षेत्रीय पार्टीयो ने अपना स्थान बनाया।
निर्वाचन आयोग के द्वारा क्षैत्रीय पार्टीयो के समक्ष यह प्रावधान हो की वे सारे देश में अपने उम्मीदवार खड़े करे और एक निश्चीत संख्या मे सीटो को जीते , अन्यथा उनकी मान्यता रद्द कर दी जाएगी। जब यह दबाव होगा तो क्षैत्रीय पार्टीया स्वत: अलग हो जाएगी। यह हो तो कैसे हो ,किसी भी संवैधानीक संशोधन के लिए दो तीहाई बहुमत आवश्क है।
एक प्रश्न मुझ जेसे,कई लोगो के मन मे हमेशा चलता है की ;पूरे देश के कुल वोट मे से सबसे ज्यादा वोट प्राप्त करने वाली पार्टी विपक्ष मेंबैठती है , और उस से कम वोट पाने वाली पार्टी जोड़ तोड़ कर सत्ता में। किसी एक क्षैत्रीय पार्टी के मतदाता देश के तमाम मतदाताओ पर भारी कैसे हो जाते है ? तो यह जनता की कैसीचुनी हुई सरकार है ? क्या हमारा कथित लोकतन्त्र बिमार नहींहै ?
तमाम बुद्धिजिवी वर्ग ,राजनैताओ , तथा समाज के हर वर्ग को विचार करना होगा ,पहल करनी होगी।क्षैत्रीय पार्टीयो को अपनी राजनिती अपने क्षैत्र के लिये ही करनी होगी।केन्द्र मे बाय पोलर सिस्टम हो ,इस पर सभी छोटी पार्टीयो को सहमत होना होगा।
वर्तमान मे हमारी प्रणाली में जितने दोष है ;उन्हे दूर करने के लिये संशोधन किये जाए । मगर यह कैसे हो? क्या यह संभव है ?
जी;हाँ यह तभी संभव है,जब हर आदमी को जोड़ा जाए । हर वो आदमी जो ,टी वी शो के रेन्कीग केलिये एस एम एस करता है और आम चुनाव का बहिष्कार करता है ;.स्थानीय मुद्दो पर ;ऎसे वोटर को जोड़ना होगा चुनाव से । हर जो यह कहता है की मेरे अकेले के वोट से क्या होगा? उसे भी साथ मे लेना होगा।वोट संग्रहण की विधी {चुनाव }मे भी बदलाव की आवश्कता है । हर वोट जहाँ हो वही से जोड़ लीया जाए।एसी प्रणाली विकसीत की जाए , तभी बदलाव होगा । ।तभी सही मायनो में "लोकतन्त्र"होगा ।
Nice thoughts. I also picked a thought from same field. will keep in tuch.
जवाब देंहटाएंStrange but truth, yahi hota hahi hamare yaha. Ekdam sahi likha hai aapne, par main bhi unme se ek hu jo ye sochta hai ki mere ek vote se kya hoga? Central govt. kisi ki bhi ho uski pahuch humari problems tak nahi hai..ye alag baat hai ki unhe ye sari problems yaad hai par ek chunavi prachar ki tarah.
जवाब देंहटाएंBut i am still agree with the fact, that if i am not voting i don't have any rights to say all that.
It's very impressive, i like your way of thinking. Har aadmi ko voting main jod sakte hai, par us har aadmi ki soch kaise badlenge jo salo se "rajneeti" jhel rahi hai. Logo ka, Logo ke liye, Logo ke dwara....locktantra ka ya mulbhut sidhhant ab kitna bacha hai?
जवाब देंहटाएंलेख बहुत अच्छा है । बधाई ।
जवाब देंहटाएंलोकतंत्र का सटीक खाका खींचा है।
जवाब देंहटाएंऔर हॉं, आपका परिचय पढा, अन्तिम दो पंक्तियॉं बहुत प्यारी लगीं।
SBAI TSALIIM