" माँ " यह एक सिर्फ़ शब्द नहीं। "माँ" स्पदंन है ह्रदय का । माँ की धड़कन ,बच्चे की धड़कन नौ माह तक एक ही होती है । जब जनमता है शिशु , विलग किया जाता है दोनो को । नाल काट दी जाती है, मगर फ़िर भी जीवन पर्यन्त वह जुड़ाव होता जो कभी अलग नहीं किया जासकता है ।
जब भी "माँ" शब्द उच्चारीत होता है , शब्द के अनुस्वार से साँसो में जो अनुनाद उत्पन्न होता है;पुलकित कर देता है ,मन को, रोम रोम को । माँ वीणापाणी ने वीणा के तारो को झनकृत कीया हो एसा मधुर शब्द है" माँ "।
जब मालिक ने इन्सान को बनाया और उसे दुनियाँ में भेज ने को तत्पर हुआ तो फ़रिश्तो ने पूछा इसे अकेले ही दुनियाँ में भेजोगें। मालीक ने कहा नहीं, फ़रिश्ते के साथ । फ़रिश्तो ने पूछा-"कौन होगा वह फ़रिश्ता ,जो इस के साथ जाऎगा"? जवाब मिला ......."माँ"!
धरा की विशालता और देने काभाव है,"माँ"।शायद इसी लिये नदीयों को भी हम माँ कह के बुलाते है।जो पालती रही अपने किनारो पर सभ्यताओ को ।
शब्दो में नहीं व्यक्त की जा सकती है अनूभुति । गीतकारो ने ,कवियो ने ,शायरो ने "माँ " क्या है इसे व्यक्त करने की पूरजोर कोशीश की है ;पर फ़िर भी सभी आयामो को व्यक्त नहीं कर सके ।"माँ" उससे भी कही आगे है । मगर फ़िर भी वो गीत ,कविता ,नज़्मे,शेर अच्छे लगते है ; जिनमे माँ को चित्रीत किया गया हो ।जैसे माँ भाती हर एक को, वैसे ही भाते वो गीत ,वो नज़्मे ,वो शेर जिस में "माँ"शब्द है।
सारी दुनिया माँ के आँचल मे सीमट आती है।जब सारी दुनियाँ बैगानी हो जाती है ; तो अपनी होती सिर्फ़ "माँ"। बचपन को सहेजती ,किशोरावस्था को प्रवाह देती ,युवा वस्था में दिल की हर बात को समझती है सिर्फ़ "माँ"।इस "माँ" से मीठा और फ़लदायक कोई शब्द दुनियाँ में नही ।
"माँ" कि सत्ता और महत्ता को मनुष्य ने अनादि काल से जाना और पूजा है ।सनातन धर्म में "माँ"के सभी रूपो ,आयामो को पूजा है । दुर्गा सप्तशती प्रमाण है ।"या देवी सर्व भूतेषु मातॄ रुपेण संस्थीता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम :"। यही माँ का रूप,असंभव को संभव करता।अपने बालको का रक्षण करता ।मदर मेरी भी इससे अलग नही ।
"माँ"खुद गीले में सो कर बच्चे को सुखे मे सुलाती । खुद न सोती ,बच्चे कि निन्द न हो तो चिन्तीत हो जाती । तभी तो मन कहता ’ मेरी दुनियाँ है माँ तेरे आँचल में ’ ।माँ का आँचल सारा आकाश ओढ़े सा लगता है ,जब छुप जाते है माँ के आँचल में।
मनुष्य का मनोबल है माँ, आत्मा का संबल है माँ ।
नीड़ मे चिड़िया के पंखो के नीचे बैठे चूज़ो ने पुछा "माँ आकाश कितना बड़ा है "?
"तुम्हारे पंखो से छोटा " माँ ने कहा । यही मनोबल देती है माँ ।
मनुष्य क्या भगवान को भी भाया माँ का स्वरूप ,माँ का आँचल तभी तो लिया राम , कॄष्ण का अवतार ।
"कुपुत्रो जायते क्वचिदपी कुमाता न भवती" इस पंक्तिमें पूरा दर्शन छुपा है। पुत्र कुपुत्र हो सकते है पर माता कभी कुमाता नहीं होती।इस धरा पर शायद ही कोई ऎसा मनुष्य या जीव होगा ,जो माँ की सत्ता को नकार सके ।
मदर्स डे तो केवल व्यक्त करने का तरीका है। हर दिन माँ को समर्पित रहे , हर दिन मदर्स डे । शायद यही सब है ,जो कभी नवरात्री मनाने वाले को,मदर्स डे मनाने से नहीं रोकाता ।
और अन्त में "माँ" से कभी ना बिछड़े कोई जीव धरा पर।"माँ"के विछोह मे कोई आँख की कोर ना भीगे ;यही हम दुआ करे।
"वो कौन सी चीज़ है , जो यहाँ नहीं मिलती . सब कुछ मिल जाता है, लेकीन माँ नहीं मिलती"।
शनिवार, 9 मई 2009
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मां तूने दिया हमको जन्म
जवाब देंहटाएंतेरा हम पर अहसान है
आज तेरे ही करम से
हमारा दुनिया में नाम है
हर बेटा तुझे आज
करता सलाम है
मातृ-दिवस की शुभ-कामनाएँ।
जवाब देंहटाएंThe way you express yourself is excellent. Sach hai sab kuchh mil jata hai par Maa nahi milti, Maa ki jagah koi nahi le sakta, par wo sare doosre log jo hame pyaar karte hai, hamara dhyaan rakhte hai, un sabko bhi shubkamnae..:)
जवाब देंहटाएंMother is unconditional gauranttee of Eternal Love, with widely spread wings of fragrance of Blessings, nothing to comment on 'MAA', as we are much much tiny particles as compared to Maa. Your Expression is marvellous.
जवाब देंहटाएंMamta ki shabdik abhivyakti sarahniya hai. Sadar Vandan. D. Pandit