दोस्तो अपनी कही ,आपकी सुनी तो अनवरत चलती रहेगी।मगर आज जो मे कहना चाहता हूँ वह एक ऎसा पत्र है ,जिसकी भावना मन को छू लेगी,और आप भी अपने बच्चे के शिक्षक से यही सब बाते कहना चाहेगें। यह पत्र अब्राहमलिंकन ने अपने बेटे के शिक्षक को लिखा था ।एक मित्र से हिन्दी अनुवाद प्राप्त हुआ था । आप भी पढ़े,आपको भी पसन्द आएगा।
अब्राहम लिंकन का पत्र उनके बेटे के शिक्षक के नाम.
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श्रध्देय, गुरूजी
उसे सिखाएं
सभी लोग न्याय प्रिय नहीं होते
नहीं होते सभी सत्यनिष्ठ
मगर,
संसार मे दुष्ट होते है
तो आदर्श नायक भी;
होते हैं घाघ दुश्मन,
तो संरक्षण देने वाले दोस्त भी ।
मैं जानता हूँ-
सारी बातें झट्पट सिखाई नहीं जातीं,
फ़िर भी हो सके तो उसके मन पर अकिंत करें
पसीना बहाकर कमाया गयाएक पैसा भी,
भ्रष्टाचार से मिली संपत्ति से मूल्यवान होता हैं।
पराजय कैसे स्वीकार कीजाए
यह उसे सिखाएं,
और सिखाएं विजय संयम से ग्रहण करना।
आप मे शक्ति हो तो
सिखाएं उसे ईर्ष्या-द्वेष से दूर रहना
और कहे गुण्डोसे मत डर,
उन्हें झुकाना ही पुरूषार्थ है।
आप करा सकें तो उसे,
पुस्तकों के आश्चर्य लोक की सैर अवश्य कराएं.
किन्तु इतना समय भी दें कि वह देखे-
पक्षियों की आसमान तक उड़ान,
सुनहरी धूप में उड़ने वाले भ्रमर,
और हरी-भरी पहाड़ीयो के ढ़ालों पर
डोलने वाले छोटे -छोटे फ़ूल।
विध्यालय में उसे मिलनेदें-
यह सबक -
धोखे से प्राप्त सफ़लता की अपेक्षा
सत्कार्य में प्राप्त असफ़लता भी श्रेयस्कर है।
अपनी संकल्पना , अपने सुविचार,
इन पर उसका दृढ़ विश्वास रहे ।
सत्य के पथ पर भले ही दुनियाँ उसे गलत कहे;
फ़िर भी उसे बताएं
वह भले लोगों के साथ भला रहे और दुष्टो को मज़ा चखाए.
मेरे बेटे को ऎसा मनोबल देना
कि वह भीड़ का अनुसरण न करें ,
किन्तु जब भी सब एक स्वर में गाते हो ;
वह उन्हें धैर्य से सुने ,और उसे यह भी बताएं-- सुने सबकी,
पर छान ले उसे सत्य की छलनी से
और छिलके फ़ेंककर केवल सत्य ही स्वीकार करे।
उसके मन पर मुद्रांकित करें-
हँसता रहे ह्रदय का दुख दबाकर,
पर कहें उसे--
परपीड़ा पर आँसू बहाने में, लज्जित न हो ।
आँसूओं मे शर्म की कोई बात नहीं ;
उसे सिखाएँ- तुच्छ लोगो को तुच्छ माने
और चाटुकारों से सावधान रहे ।
उसे यह अच्छी तरह से समझाएं कि;
करे वह भरपूर कमाई,
ताकत और अकल लगा कर .
परन्तु कभी न बेचे ह्रदय और आत्मा को ।
धिक्कार करने आए तो,
उपेक्षा करना उसे सिखाए ; और मुद्रित करें उसके मन पर ,
जो सत्य और न्याय पूर्ण लगता हो,
मुकाबला करे असत्य का डट कर ।
ममता से पालन कीजिएं पर ,लाड़ मे न बि्गाड़े उसे;
बिना आग में तपे-झुलसे, लोहा फ़ौलाद नहीं बनता ।
उसे सिखाएँ--
देश हित में अधीर ,बैचेन होने का धैर्य,
और रह सके वह निश्चल यदी फ़हराना हो शौर्य पताका ।
और भी एक बात बताते रहें उसे,
हमारा दॄढ़ विश्वास हो स्वयं पर ,
तभी हो सकेगी, उद्दात्त श्रध्दा मानव जाति पर ।
क्षमा करें गुरूजी;
मैं बहुत कुछ लिख गया हूँ,
काफ़ी कुछ माँग रहा हूँ,
पर देखें हो सके तो उतना करें,
मेरा बेटा बहुत ही प्यारा ,
होनहार है वह..।
शायद ,आपने पहले भी पढ़ा हो,यह आशा है कि फ़िर पढ़ना भी अच्छा हि लगेगा ।
गुरुवार, 23 अप्रैल 2009
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वाकाई पत्र प्यारा सा है।
जवाब देंहटाएंbahut hi acche se patra ka hindi translation kiya he.aur ye sari bate ek accha Pita hi samjh sakta hai.
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